ताजमहल को टक्‍कर दे रही आगरा में सफेद मार्बल की यह शानदार इमारत, 104 साल में हुई तैयार

संप्रदाय के एक अनुयायी प्रमोद कुमार ने उल्लेख किया कि इसका निर्माण रचनाकारों के अटूट विश्वास, उत्साह और समर्पण का प्रमाण था और जो उनकी धार्मिक मान्यताओं से प्रेरित था. 

यह इमारत 193 फुट ऊंची है और राजस्‍थान के मकराना के व्‍हाइट मार्बल से बनी है. निसंदेह यह भारत की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है. 

राधास्वामी संप्रदाय के संस्थापक को समर्पित है यह इमारत 

यह समाधि राधास्वामी संप्रदाय के संस्थापक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज को समर्पित है और आगरा के दयालबाग क्षेत्र में स्थित स्वामी बाग कॉलोनी में है. यहां पर रोजाना बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं और इसके शिल्‍प कौशल की प्रशंसा करते हैं. यहां पर प्रवेश निःशुल्क है, जबकि फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है. 

फिलहाल कुछ छोटी-मोटी चीजें जोड़ी जाना अभी बाकी हैं. कार्यशाला में अत्याधुनिक टेक्‍नोलॉजी के इस्‍तेमाल वाली विशाल मशीनों और कारीगरों को देखा जा सकता है. परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, “निश्चित रूप से हमारे पास विशाल ग्राइंडर, कटर, फिनिशर, लॉरी, लिफ्टर और सभी तरह की मशीनें और कंप्यूटर तकनीक हैं. 

लोग ताजमहल से कर रहे हैं इसकी तुलना 

यहां आने वाले लोगों ने पहले से ही स्वामी बाग में स्थित समाधि की तुलना विश्व धरोहर स्मारक ताजमहल से करना शुरू कर दिया है, जो रोजाना दुनिया भर के हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है. ताजमहल में मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी पत्नी मुमताज महल का मकबरा है. 

निर्माण की निगरानी करने वाले अधिकारियों ने कहा, “यह एक प्रकार की पूजा है जो चलती रही है और निरंतर चलती रहेगी.”

स्वामी बाग की यह समाधि राधास्वामी मत के अनुयायियों की एक कॉलोनी के बीच स्थित है. उत्तर प्रदेश, पंजाब और कर्नाटक जैसे राज्यों के साथ विदेशों में भी इस मत के लाखों अनुयायी हैं. 

1922 से आज तक चल रहा है निर्माण कार्य 

मूल समाध साधारण सफेद बलुआ पत्थर की संरचना थी. 1904 में इलाहाबाद के एक वास्तुकार द्वारा एक नए डिजाइन पर काम शुरू हुआ. कुछ सालों तक काम रुका रहा, लेकिन 1922 से आज तक लोग इस विशाल और शानदार निर्माण कार्य में ज्यादातर हाथ से ही मेहनत कर रहे हैं. 

कारीगर अपनी पूरी निष्‍ठा से कार्य कर रहे हैं. कुछ बुजुर्गों ने अपना पूरा जीवन इस स्थान पर बिताया है, जैसा उनके पहले उनके पिता और दादा ने किया था और जैसा उनके बेटे और पोते अब कर रहे हैं. हालांकि अब कारीगरों के पास मदद के लिए कुछ मशीनें हैं, लेकिन उनका काम हमेशा की तरह ही कठिन मेहनत वाला है. 

इस इमारत का वास्तुशिल्प डिजाइन किसी विशेष शैली, आधुनिक या पारंपरिक, के अनुरूप नहीं है. इसमें विभिन्न शैलियों को सामंजस्यपूर्ण ढंग से मिश्रित करने का प्रयास किया गया है. 

31.4 फुट का सोने से मढ़ा शिखर ताज महल से भी ऊंचा है और इसे विशेष रूप से दिल्ली से बुलाई गई क्रेन द्वारा लगाया गया था. इसमें सालों लग थे क्‍योंकि वांछित आकार के संगमरमर के पत्थर नहीं मिल सके थे. समाधि के लिए अधिकांश संगमरमर राजस्थान के मकराना और जोधपुर की खदानों से आया है. विभिन्न प्रकार का मोजेक पत्थर पाकिस्तान के नौशेरा का है. 

निर्माण प्रक्रिया को करना पड़ा था कई समस्‍याओं का सामना 

निर्माण प्रक्रिया में कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ा, जिनमें सही गुणवत्ता का संगमरमर प्राप्त करने में कठिनाइयां भी शामिल रहीं. माउंट आबू और उदयपुर क्षेत्रों में खदानें पट्टे पर ली गई थीं. वहीं मजदूरों की कमी के कारण निर्माण कार्य बार-बार प्रभावित हुआ, क्योंकि बड़ी संख्या में कुशल राजमिस्त्री खाड़ी देशों में चले गए. 

परियोजना के प्रवर्तक इसकी तुलना किसी अन्य इमारत से करना गलत मानते हैं, लेकिन जो लोग समाधि का दौरा करते हैं, वे इस बारे में जरूर सोचते हैं कि क्या आगरा में क्‍या ताजमहल का कोई प्रतिद्वंद्वी है. 

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